Author: social media
Migraine, Sinusitis and Liver problems
*माइग्रेन और साइनस के लिए एक अदभुत प्रयोग षडबिंदु तेल को नाक और कान में दिन में 2-3 बार डालें बैद्यनाथ का अति उत्तम है।*
जिगर की बीमारी (Liver problem)*
परिचय :स्नेहा आयूर्वेद ग्रुप
जिगर रोगग्रस्त होने के कारण पाचक पित्त कम मात्रा में निकलता है जिससे खाना सही तरह से पच नहीं पाता और कब्ज की शिकायत हो जाती है। जब जिगर की बीमारी साधारण अवस्था में होता है तो इसका पता नहीं चलता है लेकिन जब यह ज्यादा बढ़ जाता है तो जिगर वाले स्थान पर हाथ लगाने से इसका रोग महसूस होता है। यह रोग अधिक शराब पीने, बावासीर आदि रोगों के कारण खून का निकलना बंद हो जाने आदि कारणों से होती है।
लक्षण :
इस रोग की शुरुआता पहले ठंड लगकर होता है और फिर बुखार होता है। इसके बाद रोगी की दाईं पसलियों के नीचे जहां जिगर होता है वहां दर्द शुरू हो जाता है। बाईं कोख में प्लीहा (तिल्ली) होता है और जब जिगर का रोग अधिक बढ़ जाता है तो जिगर व तिल्ली सूजन आ जाती है। जिगर में सूजन के साथ दर्द होता है। मल कम मात्रा में काले या कीचड़ की तरह का आता है। रोगी को पूरा शरीर काला हो जाता है। जिगर रोगग्रस्त होने पर भूख नहीं लगती, कब्ज बन जाता है, पतले दस्त आते हैं, शरीर कमजोर हो जाता और खून की कमी हो जाती है। जी मिचलना, मुंह का स्वाद खराब होना, मुंह में तीखा पन महसूस होना, वमन होना, नाड़ी की गति कम होना और हर समय बुखार बना रहना आदि इस रोग का लक्षण हैं।
विभिन्न औषधियों के द्वारा रोग का उपचार :
1. ग्वारपाठा : लगभग आधा ग्राम ग्वारपाठे के रस में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हल्दी का चूर्ण और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधानमक मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। इससे जिगर की सूजन व दर्द ठीक होता है।
2. सोंठ : सोंठ, छोटी पीपल, चव्य व केशर 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर एक साथ पीस लें और शहद के साथ मिलाकर सेवन करें। यह जिगर व तिल्ली की सूजन को समाप्त करता है।
?3. मूली :
20 मिलीलीटर मूली का रस और 20 मिलीलीटर मकोय का रस मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से जिगर की सूजन, जलन और पीडा शांत होती है।
मूली को 4 भागों में काटकर उसके ऊपर 6 ग्राम पिसा नौसादर छिड़ककर बर्तन में रखकर रात को औंस में रख दें। सुबह उस बर्तन में जो पानी एकत्रित हो उसे पीकर ऊपर से मूली को खा लें। ऐसा करने से 7 दिन में यकृत और प्लीहा रोग ठीक होता है।स्नेहा समुह
1 ग्राम मूली के बीज को सुबह-शाम खाने से जिगर और तिल्ली का रोग ठीक होता है।
4. नागरमोथा : 10 ग्राम नागरमोथा, 10 ग्राम आंवला, 10 ग्राम अदरक, 30 ग्राम हरड़ और सोंठ 40 ग्राम इन सब को मिलाकर कूटकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण प्रतिदिन सेवन करने से प्लीहा (तिल्ली) का बढ़ना, जिगर का बढ़ना, बुखर, भूख का कम लगना, दस्त आदि ठीक होता है।
5. 4. नागरमोथा : 10 ग्राम नागरमोथा, 10 ग्राम आंवला, 10 ग्राम अदरक, 30 ग्राम हरड़ और सोंठ 40 ग्राम इन सब को मिलाकर कूटकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण प्रतिदिन सेवन करने से प्लीहा (तिल्ली) का बढ़ना, जिगर का बढ़ना, बुखर, भूख का कम लगना, दस्त आदि ठीक होता है।
5. छोटी पीपल : छोटी पीपल, पीपरामूल, चव्य, चीता और सोंठ 4-4 ग्राम लेकर 80 मिलीलीटर पानी में पकाएं और जब 20 मिलीलीटर पानी शेष रह जाए तो इसे छानकर लें। इसके बाद इस काढे़ में थोड़ा-सा जवाखार डालकर पीएं। इससे जिगर और प्लीहा का बुखार दूर होता है।
6. चित्रक : चित्रक की जड़ की छाल 3 ग्राम और सोंफ 3 ग्राम को 12 घंटे तक नींबू के रस में खरल करके गोली बना लें। इसमें से 1-1 गोली सुबह-शाम सेवन करने से जिगर की बीमारी दूर होती है।
7. सेब : सेब के सेवन से लीवर को शक्ति मिलती है और यह लीवर से सम्बंधी बीमारी को ठीक करता है।
8. खजूर : 4 से 5 खजूर रात के समय पानी में भिगोकर रख दें और सुबह खजूर को उसी पानी में मसल कर शहद मिलाकर पीएं। इससे लीवर का बढ़ना रुक जाता है और जलन व दस्त रोग दूर होता है।
9. नीम : 30 ग्राम नीम के पत्ते एक गिलास पानी में खुब उबालकर 5-5 चम्मच पानी हर 3-3 घंटे पर प्रतिदिन पीएं। इससे जिगर की सूजन व जलन दूर होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी को शराब पीने से लीवर जल्दी ठीक होता है।
10. सोयाबीन : सोयाबीन में लेसीथिन पाया जाता है जो मस्तिष्क के ज्ञान-तंतुओं तथा लीवर के लिए फायदेमंद होती है।
11. मकोय : मकोय का रस 20 से 50 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से जिगर की जलन दूर होती है और पेट का रोग ठीक होता है।
12. अर्कक्षार : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग – लगभग 1 ग्राम अर्कक्षार को गर्म पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से जिगर व प्लाही का बढ़ना ठीक होता है।
13. अदरक : अदरक का पीसा हुआ चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ खाने से जिगर व प्लीहा की जलन दूर होती है।
14. नमक : आधा चम्मच सेंधानमक और 5 चम्मच राई को पानी के साथ पीसकर लेप करके 5 मिनट तक रखें और फिर धोकर घी लगाएं। इससे यकृत की जलन और दर्द में आराम मिलता है।स्नेहा समुह
*चित्रक हरीतकी के फायदे, नुकसान, उपयोग विधि*
स्नेहा आयूर्वेद ग्रुप
चित्रक हरीतकी में मुख्य घटक चित्रक, हरीतकी, दशमूल, गिलोय, आंवला, त्रिकटु है। गिलोय, आमला, दशमूल रसायन हैं जो की शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है। त्रिकटु और चित्रक शरीर से आमदोष को दूर करते है। यह दवा कृमिनाशक भी है।
1 चित्रक हरीतकी के घटक |
2 चित्रक हरीतकी के फायदे |
3 चित्रक हरीतकी के चिकित्सीय उपयोग |
4 चित्रक हरीतकी की सेवन विधि और मात्रा |
चित्रक हरीतकी, एक आयुर्वेदिक हर्बल दवा है जिसे भैषज्य रत्नावली के नासारोगाधिकार से लिया गया है। यह कफ विकारों की उत्तम दवा है। इसके सेवन से पाचन तन्त्र पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यह मन्दाग्नि को दूर करने वाली और कफघ्न औषधि है। चित्रक हरीतकी में मुख्य घटक चित्रक, हरीतकी, दशमूल, गिलोय, आंवला, त्रिकटु है। गिलोय, आमला, दशमूल रसायन हैं जो की शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है। त्रिकटु और चित्रक शरीर से आमदोष को दूर करते है। यह दवा कृमिनाशक भी है।
चित्रक हरीतकी, एक अवलेह है। अवलेह या लेह्य वे दवाएं हैं जो की औषधियों के क्वाथ, रस, फाँट, आदि का पाककर बनायी जाती है तथा शर्करा, गुड़, शहद या अल्प प्रक्षेप डालने से यह चाटने योग्य बन जाती हैं। आयुर्वेद में लेह या अवलेह को लेने की मात्रा 6-24 gram बताई गई है। किन्तु अवलेह की सही खुराक, व्यक्ति की उम्र, बल, रोग और पाचन शक्ति पर निर्भर करती है। अल्पबल और कमज़ोर पाचन में तो इसे १ तोला तक ही लिया जाए तो सही है।स्नेहा समुह
Leave a Reply